10 पाकिस्तानी आतंकियों ने मुंबई में कहर बरपाया था. इसमें से एक आतंकी अजमल आमिर कसाब को जिंदा पकड़ा गया. उसे पकड़ने में अहम भूमिका महाराष्ट्र पुलिस के असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर तुकाराम ओंबाले ने निभाई थी.
उस घटना से महज पांच दिन पहले पुलिस इंस्पेक्टर संजय गोविलकर की पोस्टिंग मुंबई के डीबी मार्ग पुलिस स्टेशन में हुई थी. उन्होंने उस खौफनाक रात को याद करते हुए 'द वीक' मैगजीन को बताया, ''उस रात करीब साढ़े बारह बजे जब हमने देखा कि एक कार ने डिवाइडर को टक्कर मार दी. हमने दो पुलिस टीमें बनाईं और उस तरफ बढ़े. एक टीम में मैं, तुकाराम ओंबाले और अन्य साथी थे, दूसरी टीम में भास्कर कदम, हेमंत बौधंकर और अन्य लोग थे. भास्कर कदम ने बेहतरीन शॉट लगाया. गोली सीधे ड्राइविंग सीट पर बैठे एक आतंकी को लगी और वह ढेर हो गया.''
इसके साथ ही उन्होंने कहा, ''मैं और तुकाराम ओंबाले, कसाब की तरफ लपके. कसाब ने अपने पैरों के पीछे AK-47 छिपा रखी थी. उसने तत्काल उसे निकालते हुए फायरिंग शुरू कर दी. ओंबाले ने सामने से उसकी गोलियों को झेलते हुए उसे पकड़ लिया और तब तक नहीं छोड़ा जब तक कि हम लोगों ने उसे पकड़ नहीं लिया. मैंने तुकाराम जैसी वीरता और साहस कभी नहीं देखा.'' तुकाराम ने कसाब की एके-47 रायफल की नली पकड़ ली थी. वह फायरिंग करता रहा लेकिन उन्होंने उसको नहीं छोड़ा.
संजय गोविलकर ने ये भी कहा कि साथी हेमंत तो कसाब को गोली मारने ही वाले थे कि अचानक बिजली की तरह दिमाग में विचार कौंधा और उनको ट्रिगर नहीं दबाने के लिए कहा. इस तरह कसाब को जिंदा पकड़ा गया. उसको चार साल बाद 21 नवंबर 2012 को फांसी दे दी गई. संजय गोविलकर (49) पुलिसकर्मियों के जीवन पर अब तक पांच किताबें लिख चुके हैं.
तुकाराम ओंबाले
महाबलेश्वर के रहने वाले तुकाराम ओंबाले को असाधारण साहस दिखाने के लिए मरणोपरांत अशोक च्रक से नवाजा गया. तुकाराम के परिवार में पत्नी और चार बेटियां-पवित्रा, वंदना, वैशाली और भारती हैं. उनकी शहादत के बाद परिवार ने यह कहते हुए किसी भी तरह की वित्तीय सहायता लेने से इनकार कर दिया कि उनकी पेंशन और जमा-पूंजी पर्याप्त है. उनकी एक बेटी वैशाली घर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हैं. दूसरी बेटी भारती सेल्स टैक्स में क्लास वन ऑफिसर हैं. पवित्रा ब्यूटी सैलून चलाती हैं और वंदना होममेकर हैं.
वैशाली ने उस घटना को याद करते हुए 'द वीक' से कहा, ''मुझे याद है कि उस रात साढ़े बारह बजे के आस-पास कसाब से उनकी मुठभेड़ से चंद मिनट पहले मेरी उनसे बात हुई थी...उन्होंने उस वक्त कहा था कि चिंता की कोई बात नहीं है और हम लोगों को ऐहतियात बरतने की सलाह दी थी.'' वैशाली ने यह भी कहा कि वह बहुत बहादुर आदमी थे. उनके अंदर डर नाम की कोई चीज नहीं थी. वह हमेशा कहते थे कि हमेशा भयमुक्त रहो. बाहर निकलने से मत डरो. इस वजह से कभी घर में मत बैठो कि बाहर जाने से डर लगता है.
वैशाली ने बताया कि यदि वह आज जिंदा होते तो रिटायर होने के बाद महाबलेश्वर में कमजोर तबके के बच्चों को शिक्षा देते. हम शहीद तुकाराम ओंबाले चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से उनके सपने को पूरा करना चाहते हैं. परिवार द्वारा किसी भी तरह की वित्तीय मदद से इनकार के मुद्दे पर बोलते हुए वैशाली ने कहा कि ये रकम उनको दी जानी चाहिए जिनको इसकी वास्तव में जरूरत है
अजमल कसाब के अंतिम अल्फाज थे- 'आप जीत गए, मैं हार गया'
पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने उस हमले को अंजाम दिया था. उनमें से एक अजमल आमिर कसाब को जिंदा पकड़ा गया था. बाद में उसको फांसी दे दी गई. लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी अजमल आमिर कसाब से जिस सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर रमेश महाले ने सबसे पहले पूछताछ की थी, उनसे अपने अंतिम समय में कसाब ने कहा था, ''आप जीत गए, मैं हार गया.'' भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने समेत 80 मामलों में दोषी ठहराए गए कसाब ने अपनी फांसी से एक दिन पहले यह बात रमेश महाले से की थी.
जब कसाब पकड़ा गया...
26 नवंबर, 2008 को जब कसाब पकड़ा गया तो सबसे पहले जिन पुलिस ऑफिसर्स ने कसाब से पूछताछ की थी, उनमें महाले भी शामिल थे. महाले 26/11 आतंकी हमले के मुख्य जांच अधिकारी थे और 2008 में मुंबई क्राइम ब्रांच की यूनिट 1 के मुखिया थे. कसाब क्राइम ब्रांच की कस्टडी में 81 दिन रहा था. उसके बाद उसे आर्थर रोड जेल में शिफ्ट किया गया था.